ःःःश्री आईमाता ःःः
आई माता नवदुर्गा (देवी) का अवतार हैं. ऐसा कहा जाता है कि ये मुल्तान और सिंध की ओर से, आबू और गौड़वाड़ प्रदेश होती हुई बिलाड़ा आई. एक नीम के वृक्ष के नीचे इन्होंने अपना पंथ चलाया. आईमाता का पूजा स्थल (थान) बडेर कहलाता है, जहां कोई मूर्ति नहीं होती. आई माता के अधिकतर भक्त सीरवी जाति के हैं, जो क्षत्रियों से निकली एक कृषक जाति है. इस रूप में ये सीरवी जाति के राजपूतों की कुलदेवी है. आईमाता का प्रसिद्ध मंदिर बिलाड़ा में है, जहां दीपक की ज्योति से केसर टपकती है. सीरवी लोग आईमाता के मंदिर को दरगाह कहते हैं. यहां हर माह की शुक्ल द्वितीया को इनकी पूजा-अर्चना होती है. - ( राजस्थान पत्रिका इयर बुक 2007 ,पृष्ट संख्या 865 )के सभार से )
आप भी सीरवी जाति व समाज की जानकारी भेज सकते
आई माता नवदुर्गा (देवी) का अवतार हैं. ऐसा कहा जाता है कि ये मुल्तान और सिंध की ओर से, आबू और गौड़वाड़ प्रदेश होती हुई बिलाड़ा आई. एक नीम के वृक्ष के नीचे इन्होंने अपना पंथ चलाया. आईमाता का पूजा स्थल (थान) बडेर कहलाता है, जहां कोई मूर्ति नहीं होती. आई माता के अधिकतर भक्त सीरवी जाति के हैं, जो क्षत्रियों से निकली एक कृषक जाति है. इस रूप में ये सीरवी जाति के राजपूतों की कुलदेवी है. आईमाता का प्रसिद्ध मंदिर बिलाड़ा में है, जहां दीपक की ज्योति से केसर टपकती है. सीरवी लोग आईमाता के मंदिर को दरगाह कहते हैं. यहां हर माह की शुक्ल द्वितीया को इनकी पूजा-अर्चना होती है. - ( राजस्थान पत्रिका इयर बुक 2007 ,पृष्ट संख्या 865 )के सभार से )
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